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•बस यूँ ही•

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खाली तुम भी, खाली मैं भी, ना तुममें कुछ बाकी, ना मुझमें.....!!!!! फासले ऐसे हो जायेंगे, ये कभी सोचा न था मैंने, तुम सामने थे मेरे, पर मेरे न थे.....!!!!! एक ही रस्ते दोनों हैं, राहें जुदा हैं, तुम कहीं जा रहे, मैं कहीं और, मंजिलें क्या हैं पता नहीं.....!!!!! थोड़ी दूरियां, थोड़ी मजबूरियां, वही तुम हो,  वही वादाखिलाफी, सही है!  आदतें जाती कहाँ हैं.....!!!!! कई बार सोचता हूँ कि, न तुम गलत थे, न ही मैं सही था, बस राहें अलग हो गईं.....!!!!! आज भी तुम्हें देख बस यही सोचा कि, क्या इसीलिए मिले थे ? शायद अधूरे रह जाने को, तुम कहीं,  और मैं कहीं.....!!!!! तुम्हारी आँखों को देखा मैंने, अब भी वैसी ही हैं, पूरी दुनिया को उसी में समेटे हुए, बस उस चेहरे में कुछ ढूंढ़ रहा था मैं, वो मुझे मिली नहीं, वही! तुम्हारी वही हँसी.....!!!!! फिर ‌देखा इस काँच में, उसमें हम दोनों साथ थे, बस कुछ दूरी पर ! ऐसी दूरी जो शायद कभी ख़त्म न होगी, बस यही सोच काँच ही तोड़ दिया मैंने, मुझे ऐसा कुछ भी मंजूर नहीं, जो मुझे और तुम्हें दूर रखे.....!!!!! मुझे देख तुम्हारा यूँ नजरें झुका लेना, क्या समझता मैं उसको, अब

•साइकिल से गिर जाने का डर•

बचपन से ही ऐसे माहौल में रहा हूँ जहाँ पे मम्मी-पापा, दादा-दादी हर कदम से पहले समझाते की बेटा ध्यान से.....!!!!! जब बचपन में साइकिल सीखना हुआ, तो इस बात से डर लगता था कि कहीं गिर न जाऊँ.....तब गिरने से बहुत डर लगता था, इस डर से इतना ध्यान से साइकिल चलाना सीखा की कभी गिरा नहीं साइकिल से, एक बार भी नहीं.....पहले तो भीड़ में साइकिल लेकर ही नहीं जाता था, वजह वही एक ही, डर.....!!!!! इस डर से इतना डर लग गया कि वो गिर जाने का डर कभी अंदर से जा ही नहीं पाया.....बेशक मैं कभी साइकिल लेकर तो नहीं गिरा लेकिन उस न गिरने की वजह से गिर कर फिर उठ जाने की कला सीख नहीं पाया.....!!!!! असल जिंदगी भी बिलकुल ऐसी ही है,  गिरना भी बहुत ज़रूरी है कि पता हो कि फिर उठ जाना है, फिर उठ कर ठीक वैसे ही आगे बढ़ते रहना है.....बड़ी बात इसमें नहीं कि हम कभी गिरे नहीं, बड़ी बात इसमें है गिर कर उठ कर फिर चलने लगने में.....!!!!! असल ज़िन्दगी में आज भी जब मेरे अन्दर गिर जाने का, कहीं पीछे रह जाने का डर आ जाता है तो इतना सावधान हो जाता हूँ कि ज़िन्दगी जीना ही बन्द कर देता हूँ, सारा ध्यान बस इस बात पर होता है कि गिरना नहीं है,

•जिंदगी, मौत और तुम•

मैंने मौत को तो महसूस नहीं किया है, लेकिन मैंने तुम्हें खुद से दूर जाते देखा है। मौत भी शायद ऐसी ही होगी, न रोने देती होगी, न हँसने, और न कुछ महसूस करने। तब भी दिखता सब होगा, दिखाई कुछ नहीं देगा। पता सब चलता होगा, महसूस कुछ नहीं होगा। कुछ और दर्द तब भी याद नहीं रहता होगा, बस वो एक दिल होगा जिसमें दर्द बेहिसाब होगा, और सीना फट जाने के करीब। दिल चीखता तब भी होगा, बस आवाज नहीं आती होगी। तूफान दिल में तब भी उमड़ता होगा, अंदर तक सब कुछ उजड़ गया होगा। आँखों में आँसू तब भी आते नहीं होंगे, बस आँखें पत्थर हो जाती होंगी, न किसी को देखती होंगी और न ही कुछ दिखता होगा। मुझे लगता है ये दोनों एक ही जैसे हैं, मौत आने पर भी लगता होगा कि कोई बचा ले, तुम्हारे जाने पर ऐसा था कि कोई तुम्हें रोक ले। इतना कुछ बुरा देखा है, लेकिन इससे बुरा नहीं, हाँ.....तुम्हें खुद से दूर जाते देखा है। मैंने मौत को तो महसूस नहीं किया है, लेकिन मैंने तुम्हें खुद से दूर जाते देखा है‌‌।। ~ सौरभ शुक्ला

•कुछ टूट गया-कुछ छूट गया•

सब कुछ तो वैसा ही है,  कुछ चीजें हमने छोड़ दी ।। शर्तें तो अब भी वही हैं,  कुछ बातें हमने मान ली ।। साथी तो अब भी वही हैं,  कुछ छूट गये,  कुछ छोड़ दिये,  मशगूल हम कुछ यूँ रहे ।। लोग तो अब भी वही हैं,  कुछ चेहरे अब अंजान हैं ।। रास्ते अब भी वही हैं,  कुछ राहें अब वीरान हैं ।। हवा तो अब भी वही है,  बस फिजा कुछ बदली सी है ।। जिंदगी भी बाकी बहुत है,  कुछ जिंदगियाँ बदल गयीं ।। लोग थे खामोश कुछ वक्त को,  कोई चुप हुआ सदा के लिये ।। वो उसके दिल में मर गया,  वो दिल में उसके जी रहा ।।  बँटवारा भी कुछ यूँ हुआ,  दोनों अधूरे रह गये ।। तुम बोल दो चाहे भले,  बदनाम तुमको कर दिया,  लेकिन तुम्हारा जिक्र भी,  आगे किसी के न किया ।। सौदा नहीं करना तुम अब,  मैं हारकर आया हूँ सब ।। मोहब्बत वाले चले गये,  मोहब्बतें बाकी बहुत हैं.....।। ~ सौरभ शुक्ला

Lelha🤤

वो किस्सा जो कहानी बन नहीं पाया, वो किस्सा भी बस यहीं तक था शायद.....!!!!! उस दिन मैं तुमसे ही कह रहा था, जो चल रहा है चलने दो, समय के साथ हम खुद ही  एक दूसरे को देख कर नजरें फेर लिया करेंगे, और आज हमने  बिना एक-दूसरे को देखे ही आँखें फेर ली.....!!!!! अफ़सोस सिर्फ इतना सा है, कि अंजाम तो मिला नहीं, मैं उस कहानी को  इक ख़ूबसूरत मोड़ भी दे नहीं पाया, जहाँ उसे छोड़ सकें.....!!!!! पर हाँ..... इस जन्म में न सही, लेकिन किसी जन्म में जब हम फिर मिलें, तो खुदा से अपने साथ मेरा साथ मांग लेना, मेरी तो वो वैसे भी नहीं सुनता.....!!!!! उस जन्म में महज इक ख़ूबसूरत मोड़ न हो, बल्कि एक रिश्ता हो खूबसूरत सा.....!!!!! जहाँ मैं तुमसे जी भर के लड़ सकूं, ज़िन्दगी भर.....!!!!! ~ सौरभ शुक्ला

•बस यूँ ही•

इश्क़ से इश्क़ से लेकर  इश्क़ से नफ़रत का सफर तय कर चुका हूँ, हाँ! मैं इश्क़ अधूरा छोड़  मुकम्मल होने निकल पड़ा हूँ.....!!!!!

•काश, कशक और कशिश•

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बदलती चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती हैं  और न ही बदलते लोग। चीजों को मैं आसानी से छोड़ नहीं पाता, कुछ न कुछ,  कहीं न कहीं, मेरे अंदर बचा रह जाता है। बदलता वक़्त भी  कई बार असहज कर देता है मुझे, कहीं न कहीं मैं उस पुराने वक़्त में रह जाता हूँ। लोग आगे बढ़ जाते हैं, नये वक़्त में, नयी जगह पर, नये लोगों के साथ, लेकिन मैं कहीं न कहीं वहीं रह जाता हूँ, उसी वक़्त में, उसी जगह पर, उन्हीं लोगों का इंतजार करते हुए। साल बदल रहा है, नये लोग आयेंगे, लेकिन मैं फिर वहीं इंतजार करुंगा, थोड़ा सा मैं रह ‌जाऊंगा  इसी पुराने साल में, तुम आना मेरा हाथ पकड़ मुझे ले चलने, नये साल की तरफ.....!! !!! ~ सौरभ शुक्ला

•बेलोज़•

बे-खबर ही अच्छा था, बे-असर तो था..... भले ही बेजान था, पर बेपरवाह था..... बे-वजह जिया करता था, बे-बुनियाद खुद में, पर जो भी था अक्सर हँस लिया करता था..... पड़ा ज्यों ही इस बेलोज़ इश्क़ में, अक्सर शामें-फजर आँखें नम हो जाया करती हैं.....!!!!! हुआ करता था जो 'सौरभ' कभी मैं, इक महज कातीब बनकर रह गया हूँ.....🙂 Meanings: बेलोज़- Unconditional फजर- Morning सौरभ- Fragrance कातीब- Writer

•मेरा जहाँ•

मुकम्मल मेरा जहाँ होगा, जब..... ऐसी ही सर्द रातों में, शहर की भागम-भाग से दूर, इक वीरान स्टेशन पे, जहाँ कोई आता-जाता न हो, इक खाली कुर्सी पर, सिर्फ मैं और तुम, हल्की सी सर्दी, मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ, तुम उन जाती गाड़ियों को देखो, और मैं सिर्फ तुम्हें.....❤

तुम से तुम तक.....🙂

इस दिल की तुझ से तुझ तक की मोहब्बत भी गजब है..... तेरी हर बात याद आते ही तेरे इश्क की खुशनुमा महक इस कदर आती है कि, बेवजह ही मुस्कुरा देता हूँ.....!!!!! 😊😊😊😊😊