मैं, मौसम और हम.....
बारिश रुलाती है , ठंड दिलासा दे जाती है , और गर्मियां फिर से बारिशों के आने की बेचैनी बढ़ाती हैं..... सर्दी मैं उस अलाव के पास बैठकर बिताना चाहता हूँ , जहां मुस्कुराते हुए अपनी पुरानी बातों की लकड़ियों को आग में डाल दूंगा..... फिर कुछ नई बातों से नया मौसम बनेगा..... सुबह उठने पर सब कुछ धुंधला होगा..... इतना कोहरा होगा कि हमें कोई नहीं दिखेगा..... सारी बातें जल चुकी होंगी , और बस हम अपने नजदीक तक का ही देख सकेंगे..... धीरे से धूप आएगी ,उसे तापेंगे और शाम को हवायें फिर से सर्द हो जायेंगी..... इसी तरह मौसम कट जाएगा..... फिर वही गर्मी होगी जो बेचैनी बढ़ाएगी , बारिश का खूब इंतजार करवाएगी..... उन बारिशो का नहीं , जो मैं नहीं चाहता ,जो रुलाती हैं..... बल्कि उस बारिश का , जो हम और आप इत्मीनान के साथ बिताने वाले हैं..... ©ImSaurabh99