•बेलोज़•
बे-खबर ही अच्छा था, बे-असर तो था..... भले ही बेजान था, पर बेपरवाह था..... बे-वजह जिया करता था, बे-बुनियाद खुद में, पर जो भी था अक्सर हँस लिया करता था..... पड़ा ज्यों ही इस बेलोज़ इश्क़ में, अक्सर ...
अल्फाज़ नहीं जंजीरे हैं , जलते बुझते ख्वाबों की कुछ तहरीरें हैं.....!!!!! रास्ते पसंद हैं..... मंजिलों में मन नहीं रमता..... जैसे सीने पर किसी ने सड़क बना दी हो..... निगाहों में आसमाँ.....!!!!! बाकी सब ! "आसान है".....