खलिश.....

खुदा में भी इन दिनों कुछ कमी सी लगती है ,
तेरी सूरत तलाश में तो मिलती नहीं है.....
मैं कोई फूलों ,रंगों ,सितारों की बात नहीं कहता.....
सच तो यह है कि तुम्हारे बिना,
शाम की चाय भी जमती नहीं है.....
टांड़ पर रख दी है मैंने अपनी पसंदीदा किताबें ,
न जाने क्यों अब उनमें तबीयत रमती नहीं है.....
शाम को भी भा गई है यह मुंडेर मेरी , कि आकर बैठ तो जाती है मगर ढलती नहीं है.....
न जाने क्यों एक खलिश सी जेहन में रेंगती है ,
और गले में समंदर की प्यास ,
दूर से ही मुझे सुनाई देती है ,
अपनी ही मूक आवाज.....

©ImSaurabh99

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