•बस यूँ ही•

खाली तुम भी,
खाली मैं भी,
ना तुममें कुछ बाकी,
ना मुझमें.....!!!!!

फासले ऐसे हो जायेंगे,
ये कभी सोचा न था मैंने,
तुम सामने थे मेरे,
पर मेरे न थे.....!!!!!

एक ही रस्ते दोनों हैं,
राहें जुदा हैं,
तुम कहीं जा रहे,
मैं कहीं और,
मंजिलें क्या हैं पता नहीं.....!!!!!

थोड़ी दूरियां,
थोड़ी मजबूरियां,
वही तुम हो, 
वही वादाखिलाफी,
सही है! 
आदतें जाती कहाँ हैं.....!!!!!

कई बार सोचता हूँ कि,
न तुम गलत थे,
न ही मैं सही था,
बस राहें अलग हो गईं.....!!!!!

आज भी तुम्हें देख बस यही सोचा कि,
क्या इसीलिए मिले थे ?
शायद अधूरे रह जाने को,
तुम कहीं, 
और मैं कहीं.....!!!!!

तुम्हारी आँखों को देखा मैंने,
अब भी वैसी ही हैं,
पूरी दुनिया को उसी में समेटे हुए,
बस उस चेहरे में कुछ ढूंढ़ रहा था मैं,
वो मुझे मिली नहीं,
वही! तुम्हारी वही हँसी.....!!!!!


फिर ‌देखा इस काँच में,
उसमें हम दोनों साथ थे,
बस कुछ दूरी पर !
ऐसी दूरी जो शायद कभी ख़त्म न होगी,
बस यही सोच काँच ही तोड़ दिया मैंने,
मुझे ऐसा कुछ भी मंजूर नहीं,
जो मुझे और तुम्हें दूर रखे.....!!!!!

मुझे देख तुम्हारा यूँ नजरें झुका लेना,
क्या समझता मैं उसको,
अब मुझे कौन जीत सकता है,
तू मेरे दिल का आखिरी डर था.....!!!!!

~ सौरभ शुक्ला

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